सूचना का अधिकार कानून से सांसदों के कार्य-व्यवहार तक रोशनी पहुंची है तो यह चौंकाने वाला तथ्य सामने आया है कि कम से कम 92 सांसद राज्यसभा का सदस्य रहते हुए अन्य स्रोतों से भी वित्तीय लाभ प्राप्त करते हैं। वे या तो किसी कंपनी के निदेशक हैं, या कंपनियों में उनकी नियंत्रणकारी हिस्सेदारी है, या वे ऐसी गतिविधियों में शामिल हैं जिनके बदले उन्हें नियमित रूप से आर्थिक भुगतान होता है, अथवा वे परामर्श (कंसल्टेंसी) या अन्य पेशेवर सेवाएं देते हैं, जिसके लिए उन्हें पैसा मिलता है।
इनमें से अनेक सदस्य संसदीय समितियों का हिस्सा हैं। इनमें वित्त, उद्योग एवं सार्वजनिक उपक्रम विभागों से जुड़ी स्थायी समितियां और लोक लेखा समिति भी शामिल है। ये संसदीय समितियां बेहद शक्तिशाली मानी जाती हैं, क्योंकि कानून बनाने की प्रक्रिया में उनकी लगभग निर्णायक भूमिका बन गई है।
साथ ही इन समितियों को आयकर एवं राजस्व समेत अनेक विभागों के अधिकारियों को जिरह के लिए बुलाने का अधिकार है। स्पष्ट है कि इन कमेटियों की सदस्यता सांसदों को एक खास रसूख प्रदान करती है। इसलिए यह संदेह लाजिमी है कि ऐसे सांसद विधायी प्रक्रिया में अपने कारोबार के हितों को आगे बढ़ाने की कोशिश कर सकते हैं या फिर समिति में रहने से बने रसूख का लाभ उनके कारोबार को मिल सकता है।
सार्वजनिक जीवन में शुचिता एवं नैतिक मानदंडों के पालन के लिए यह जरूरी माना जाता है कि जिस क्षेत्र या कारोबार में किसी का स्वार्थ हो, वह संबंधित निर्णय की प्रक्रिया से अलग रहे। इसलिए अपेक्षित है कि संसदीय समितियों के गठन में इस पहलू का खास ध्यान रखा जाए।
अपेक्षा तो यह भी रहती है कि सांसद उन विषयों से जुड़े प्रश्न संसद में नहीं उठाएं, जिनका संबंध उन क्षेत्रों से है, जिनमें उनका स्वार्थ है। संसद हित साधने की जगह न बने और उसकी साख जन-प्रतिनिधित्व की सर्वोच्च संस्था के रूप में बनी रहे, उसके लिए इन बातों को सुनिश्चित करना बेहद जरूरी है।-Source: Bhaskar News | Last Updated 00:04(19/11/11)
इनमें से अनेक सदस्य संसदीय समितियों का हिस्सा हैं। इनमें वित्त, उद्योग एवं सार्वजनिक उपक्रम विभागों से जुड़ी स्थायी समितियां और लोक लेखा समिति भी शामिल है। ये संसदीय समितियां बेहद शक्तिशाली मानी जाती हैं, क्योंकि कानून बनाने की प्रक्रिया में उनकी लगभग निर्णायक भूमिका बन गई है।
साथ ही इन समितियों को आयकर एवं राजस्व समेत अनेक विभागों के अधिकारियों को जिरह के लिए बुलाने का अधिकार है। स्पष्ट है कि इन कमेटियों की सदस्यता सांसदों को एक खास रसूख प्रदान करती है। इसलिए यह संदेह लाजिमी है कि ऐसे सांसद विधायी प्रक्रिया में अपने कारोबार के हितों को आगे बढ़ाने की कोशिश कर सकते हैं या फिर समिति में रहने से बने रसूख का लाभ उनके कारोबार को मिल सकता है।
सार्वजनिक जीवन में शुचिता एवं नैतिक मानदंडों के पालन के लिए यह जरूरी माना जाता है कि जिस क्षेत्र या कारोबार में किसी का स्वार्थ हो, वह संबंधित निर्णय की प्रक्रिया से अलग रहे। इसलिए अपेक्षित है कि संसदीय समितियों के गठन में इस पहलू का खास ध्यान रखा जाए।
अपेक्षा तो यह भी रहती है कि सांसद उन विषयों से जुड़े प्रश्न संसद में नहीं उठाएं, जिनका संबंध उन क्षेत्रों से है, जिनमें उनका स्वार्थ है। संसद हित साधने की जगह न बने और उसकी साख जन-प्रतिनिधित्व की सर्वोच्च संस्था के रूप में बनी रहे, उसके लिए इन बातों को सुनिश्चित करना बेहद जरूरी है।-Source: Bhaskar News | Last Updated 00:04(19/11/11)
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